पिता की गुहार… अफसर की सूझबूझ… और मौत से छीन लाई गई जिंदगी... कुछ मिनटों की तत्परता ने उखड़ती सांसों को दे दिया नया रास्ता...
31 दिसंबर 2025
नागदा जंक्शन
कैलाश सनोलिया | नागदा । जिंदगी और मौत के बीच की दूरी कई बार सिर्फ कुछ मिनटों की होती है… और उन्हीं मिनटों में इंसान की समझ, साहस और संवेदनशीलता की असली पहचान सामने आती है। उज्जैन जिले के नागदा में बीती रात ऐसा ही एक दृश्य सामने आया, जिसने यह साबित कर दिया कि यदि समय पर निर्णय लिया जाए और इंसानियत जाग जाए, तो मौत को भी पीछे हटने पर मजबूर किया जा सकता है।
घटना 29 दिसंबर की रात करीब 1 बजे की है। शहर की रात सामान्य थी, लोग गहरी नींद में थे, लेकिन एक घर में हाहाकार मचा हुआ था। एक पिता की आंखों के सामने उसका बेटा जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था। बदहवास हालत में पिता सीधे नागदा थाना पहुंचे। आवाज कांप रही थी, शब्द टूट रहे थे और आंखों में डर साफ झलक रहा था। बस इतना कह पाए कि उनका बेटा घर में फांसी पर झूल रहा है।
पिता की हालत और उसके शब्दों की गंभीरता को समझते हुए थाना प्रभारी अमृतलाल गवरी ने एक पल भी गंवाए बिना हालात को भांप लिया। न कोई औपचारिकता, न कोई देर - उन्होंने तुरंत घटनास्थल की ओर रवाना होने का फैसला किया। यह वही क्षण था, जहां से कहानी ने जिंदगी की ओर रुख करना शुरू किया।
घर पहुंचते ही पुलिस ने दरवाजा तोड़ा। अंदर का दृश्य दिल दहला देने वाला था। 20 वर्षीय युवक धैर्य, पिता सुनील, निवासी मिर्ची बाजार, फांसी के फंदे पर लटका हुआ था। परिजन उसे मृत मान चुके थे। घर में मातम पसरा था, रोने-बिलखने की आवाजें थीं और हर किसी की आंखों में बेबसी साफ दिखाई दे रही थी। ऐसा लग रहा था मानो सब कुछ खत्म हो चुका है।
लेकिन यहीं से कहानी ने करवट ली। थाना प्रभारी अमृतलाल गवरी ने बिना एक पल गंवाए युवक को फंदे से नीचे उतारा और जमीन पर लिटाकर तत्काल सीपीआर देना शुरू किया। हर सेकंड भारी था। वहां मौजूद हर शख्स की निगाहें उस एक प्रयास पर टिकी थीं। सांसें थमी हुई थीं और समय मानो रुक गया था।
कुछ क्षणों बाद युवक की छाती में हल्की सी हरकत दिखाई दी। उखड़ती सांसों ने जैसे फिर से रास्ता तलाश लिया। वह पल किसी चमत्कार से कम नहीं था। मौत, जो कुछ ही देर पहले बेहद करीब खड़ी थी, धीरे-धीरे पीछे हटने लगी और जिंदगी ने दोबारा दस्तक दे दी।
युवक को तत्काल उपचार के लिए रतलाम अस्पताल भेजा गया, जहां डॉक्टरों की निगरानी में उसका इलाज जारी है। चिकित्सकों के अनुसार, समय पर दी गई प्राथमिक सहायता और सीपीआर ने युवक की जान बचाने में निर्णायक भूमिका निभाई। यदि कुछ मिनट और देरी हो जाती, तो परिणाम कुछ और हो सकता था।
इस घटना ने यह साफ कर दिया कि पुलिस की भूमिका केवल कानून लागू करने तक सीमित नहीं होती, बल्कि कई बार वह जीवन और मृत्यु के बीच खड़े होकर इंसानियत का सबसे बड़ा उदाहरण भी पेश करती है। पिता की समय पर दी गई सूचना और पुलिस अफसर की त्वरित समझदारी ने मिलकर एक परिवार को उजड़ने से बचा लिया।
नागदा जंक्शन की यह घटना सिर्फ एक समाचार नहीं, बल्कि एक संदेश है कि संवेदनशीलता, साहस और त्वरित निर्णय जब एक साथ आते हैं, तो मौत को भी मात दी जा सकती है। यही वजह है कि लोग इस घटना को सिर्फ बचाव की कहानी नहीं, बल्कि इंसानियत की जीत के रूप में देख रहे हैं।





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