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नल-जल नहीं... छल-जल योजना... धार में नल-जल योजना का बड़ा खुलासा- टंकी बनी, पाइप बिछे… लेकिन देगांव में आज तक पानी नहीं पहुंचा... जल जीवन मिशन की जमीनी परीक्षा... लाखों खर्च, एक बूंद नहीं... 🔹 महिदपुर नगर में 2 जनवरी को प.पू. महेंद्रसागर जी म.सा. एवं प.पू. मनीषसागर जी म.सा. का हाेगा भव्य मंगल प्रवेश... 🔹 दो जेसीबी लेकर पहुंचा नगर परिषद का अमला, जर्जर-शीर्ण अवस्था वाले छह मकान गिराए... 🔹 धार जिले का गौरव... नेपाल में अंतर्राष्ट्रीय कबड्डी प्रतियोगिता में भूटान को हराकर यश पटेल ने जीता गोल्ड... 🔹 पिता की गुहार… अफसर की सूझबूझ… और मौत से छीन लाई गई जिंदगी... कुछ मिनटों की तत्परता ने उखड़ती सांसों को दे दिया नया रास्ता... 🔹 नया साल, नई सौगात… 2026 में लाडली बहनों की रकम बढ़ाने की बड़ी तैयारी... 🔹 नया साल, नई सौगात… 2026 में लाडली बहनों की रकम बढ़ाने की बड़ी तैयारी... 🔹

नल-जल नहीं... छल-जल योजना... धार में नल-जल योजना का बड़ा खुलासा- टंकी बनी, पाइप बिछे… लेकिन देगांव में आज तक पानी नहीं पहुंचा... जल जीवन मिशन की जमीनी परीक्षा... लाखों खर्च, एक बूंद नहीं...

✍️ संवाददाता: धार  |  🖊️ संपादन: MP जनमत

31 दिसंबर 2025

धार

धरमपुरी ( शिवाजी चाैहान) । जल जीवन मिशन की नल-जल योजना का उद्देश्य सिर्फ “हर घर जल” पहुंचाना नही है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों को फ्लोराइड-युक्त, प्रदूषित और स्वास्थ्य के लिए घातक पानी से स्थायी मुक्ति दिलाना भी है। इसी उद्देश्य के नाम पर धार जिले की जनपद पंचायत धरमपुरी अंतर्गत ग्राम पंचायत डोंगरी दसोड़ा के ग्राम देगांव में लाखों रुपये की लागत से पानी की टंकी, पाइप लाइन और वितरण तंत्र का निर्माण कराया गया। लेकिन आज यह पूरी योजना गांव की प्यास बुझाने के बजाय प्रशासनिक लापरवाही और कागजी सफलता का उदाहरण बनकर खड़ी नजर आ रही है।

डोंगरी दसोड़ा पंचायत अंतर्गत देगांव में नल-जल योजना के चैंबर और पाइप लाइन झाड़ियों में दबे दिखाई दे रहे हैं, जो लंबे समय से योजना के बंद पड़े होने की गवाही देते हैं।

देगांव में बनी पानी की टंकी दूर से देखने पर भले ही एक बड़ी उपलब्धि लगे, लेकिन नजदीक जाकर देखने पर तस्वीर पूरी तरह बदल जाती है। टंकी परिसर में चारों ओर घनी झाड़ियां उग आई हैं, चैंबर झाड़ियों में दब चुके हैं, पाइप लाइन के हिस्से जमीन में अधूरे और असुरक्षित दिखाई देते हैं। साफ प्रतीत होता है कि लंबे समय से न यहां पानी पहुंचा है, न ही किसी जिम्मेदार ने पलटकर देखने की जरूरत समझी है।

धार जिले के ग्राम देगांव में जल जीवन मिशन का सूचना बोर्ड टंकी के पास लगा है, लेकिन इसी बोर्ड के नीचे खड़ी टंकी से आज तक गांव को नल से पानी नहीं मिला।

स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि टंकी का निर्माण ठेकेदार द्वारा घटिया गुणवत्ता से कराया गया है। निर्माण में मानकों की अनदेखी की गई है और कार्य की गुणवत्ता की कभी गंभीर जांच नहीं की गई। ग्रामीणों की मांग है कि टंकी, पाइप लाइन और पूरे नल-जल ढांचे की तकनीकी और वित्तीय जांच कराई जाए, ताकि सच्चाई सामने आ सके।


जब इस पूरे मामले में ग्राम पंचायत के सरपंच से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि टंकी से पानी की सप्लाई चालू है। सरपंच का यह भी कहना रहा कि गांव के लोग टंकी का पानी “गंदा” बताकर उपयोग नहीं करना चाहते और पहले से मिल रहे पानी को ही बेहतर मानते हैं। लेकिन यह बयान मौके की स्थिति और ग्रामीणों की बातों से पूरी तरह टकराता नजर आया।


हमारी टीम ने जब गांव के अलग-अलग मोहल्लों में जाकर ग्रामीणों से सीधी बातचीत की, तो ग्रामीणों ने एक स्वर में कहा कि नई पाइप लाइन में आज तक पानी की एक बूंद भी नहीं आई। न किसी ने नल से पानी आते देखा, न सप्लाई चालू होने का अनुभव किया। ग्रामीणों का सवाल बिल्कुल स्पष्ट है... जब नल-जल योजना का उद्देश्य फ्लोराइड-युक्त पानी से मुक्ति दिलाना है, तो अगर टंकी से पानी मिलता, तो कोई ज़हरीला और असुरक्षित पानी क्यों पीता...?


गांव के युवाओं का आक्रोश और भी गहरा है। युवाओं का कहना है कि इस पंचायत में योजनाएं धरातल पर नहीं, फाइलों में पूरी की जाती हैं। टंकी बनते ही फोटो खिंचवाए गए, भुगतान कर दिया गया और कागजों में योजना को सफल घोषित कर दिया गया, जबकि हकीकत में गांव को योजना का एक प्रतिशत लाभ भी नहीं मिला।


सरपंच ने अपनी सफाई में यह भी कहा कि टंकी परिसर में लगे विद्युत उपकरण और ट्रांसफार्मर चोरी हो गए, जिससे योजना प्रभावित हुई। लेकिन मौके पर पहुंचने पर यह दावा भी सवालों के घेरे में आ गया। मौके पर विद्युत खंभा भी मौजूद है और ट्रांसफार्मर भी, जिससे चोरी की बात संदेहास्पद प्रतीत होती है। ग्रामीणों और जानकारों का मानना है कि यह तर्क दरअसल पत्रकारों के सवालों और मीडिया की नजरों से बचने का प्रयास ज्यादा लगता है, न कि वास्तविक कारण।

नल-जल योजना की टंकी पर लगा वॉटर लेवल मापक यंत्र टंकी से बाहर निकलकर जमीन की ओर झांकता दिखा, जो घटिया निर्माण और तकनीकी लापरवाही की ओर इशारा करता है।
सबसे गंभीर और चिंताजनक तथ्य यह सामने आया कि टंकी पर लगा वॉटर लेवल मापक यंत्र (वाटर लेवल इंडिकेटर) टंकी से बाहर निकलकर सीधे जमीन की ओर झांकता हुआ दिखाई देता है। यह दृश्य अपने आप में बता देता है कि न तो सिस्टम को कभी सही ढंग से चालू किया गया, न ही उपकरणों की स्थापना तकनीकी मानकों के अनुरूप हुई। जब पानी के स्तर को मापने वाला यंत्र ही मज़ाक बन जाए, तो पानी सप्लाई के दावों पर भरोसा कैसे किया जाए...?

नई बिछाई गई पाइप लाइन के बावजूद देगांव में ग्रामीणों का कहना है कि इस लाइन में आज तक पानी की एक बूंद भी नहीं आई।
यहां सवाल सिर्फ ठेकेदार की भूमिका का नहीं है। यदि निर्माण अधूरा था, गुणवत्ता खराब थी और व्यवस्था चालू नहीं थी, तो लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचई) ने इस योजना को हैंडओवर कैसे कर दिया...? और ग्राम पंचायत डोंगरी दसोड़ा ने इसे बिना किसी आपत्ति के क्यों स्वीकार कर लिया...? यही वह बिंदु है, जहां यह मामला साधारण लापरवाही से आगे बढ़कर संभावित सांठगांठ की ओर इशारा करता है।


स्थिति की गंभीरता इस बात से भी उजागर होती है कि पंचायत का एकमात्र सचिव खुद को यह कहकर अलग करने की कोशिश करता है कि वह नया है और हाल ही में पदस्थ हुआ है। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि पंचायत इतनी बड़ी नहीं है कि पानी की टंकी दिखाई न दे। देगांव का बच्चा-बच्चा जानता है कि टंकी कहां बनी है, फिर जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति की अनभिज्ञता सवालों को और गहरा कर देती है।


आज ग्राम देगांव यह नहीं पूछ रहा कि टंकी कितनी ऊंची है या उस पर कितना खर्च हुआ, बल्कि यह पूछ रहा है कि जब नल-जल योजना का उद्देश्य फ्लोराइड-युक्त पानी से मुक्ति था, तो गांव आज भी वही ज़हरीला पानी पीने को मजबूर क्यों है...?


टंकी है… पाइप है… बोर्ड है… लेकिन पानी और जवाबदेही दोनों गायब है... जब तक इस योजना की निष्पक्ष जांच नहीं होती और जिम्मेदारों की जवाबदेही तय नहीं की जाती, तब तक देगांव की यह टंकी पानी की नहीं, बल्कि सिस्टम की खामोश विफलता की स्मारक बनी रहेगी।

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