नदी में बहते वादे... नदी पार कर अंतिम संस्कार को मजबूर ग्रामीण और स्कूली बच्चाें की जिंदगी दांव पर...
31 अगस्त 2025
झाबुआ/पेटलावद
झाबुआ/पेटलावद। जीत जाऊँगी तो पुलिया यहीं बनेगी... यह चुनावी मौसम का वादा था, जिसे सुनकर आनंदखेड़ी पंचायत के सुवापाट फलीया के लोगों ने तालियाँ भी बजाई थीं और वोट भी डाले थे। लेकिन दाे साल बाद हकीकत यह है कि लोग अब भी नदी में उतरकर न सिर्फ रोजमर्रा का आना-जाना कर रहे हैं, बल्कि अपने परिजनों की अंतिम यात्रा भी पानी के तेज बहाव में डुबोते हुए पार करा रहे हैं।
ताजा तस्वीरें और वीडियो सबूत हैं कि वादा सिर्फ भाषणों तक ही सीमित रहा, और जनता की जिंदगी अब भी नदी के इस पार और उस पार फँसी हुई है।
अंतिम संस्कार भी पुलिया राजनीति के भरोसे...सोचिए, कैसी विडंबना है... अंतिम यात्रा जैसे भावुक और संवेदनशील मौके पर भी ग्रामीणों को नदी पार करनी पड़ती है। कंधे पर अर्थी और पैरों में उफनती धारा। यह दृश्य सिर्फ मौत का गम नहीं, नेताओं के झूठे वादों पर जनता की हताशा और गुस्से को भी बहाकर ले जाता है।
ग्रामीणों का कहना है... ना सरपंच सुन रहा है, ना विधायक मंत्री। सब चुनाव में आते हैं, वादा कर चले जाते हैं, और हम फिर से नदी में उतर जाते हैं।
जहां जरुरत थी वहाँ पुलिया नहीं, जहाँ जरूरत नहीं थी वहाँ निर्माण...
पेटलावद विधायक निर्मला भूरिया ने चुनावी दाैरे के दाैरान गांव के लाेगाें से मंदिर में भगवान काे साक्षी मानकर वादा किया था कि सुवापाट की पुलिया उनकी प्राथमिकता होगी। जनता ने भरोसा किया, विधायक भी बनीं और मंत्री भी। लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि पुलिया कहीं और जाकर बन गई। जहाँ असली जरूरत थी वहाँ नहीं।
गांववालों का कहना है कि पुलिया का निर्माण उस जगह पर किया गया जहाँ उनके समर्थकाें और कुछ किसानों को फायदा हो, जबकि असल समस्या से जूझती जनता आज भी पानी में तैरती उम्मीदों को संभाल रही है।
स्कूली बच्चों की जान पर खेल...यह रास्ता सिर्फ अंतिम संस्कार तक ही सीमित नहीं है। रोजाना स्कूली बच्चों को भी इसी नदी से होकर गुजरना पड़ता है। कई बार बच्चे फिसलकर गिर चुके हैं। बरसात में तो हालात और भी खतरनाक हो जाते हैं।
एक तरफ नेता विकास के वादों के पोस्टर चिपकाते हैं, दूसरी तरफ बच्चों की जिंदगी रोजाना दांव पर लगती है।
गांव वालों की जुबान पर गुस्सा साफ झलकता है... वोट के लिए वादा पुलिया का, और जीत के बाद पुलिया किसी और जगह पर। नेताओं के वादे भी अब इस नदी की तरह हो गए हैं - बरसात आते ही बह जाते हैं...
एमपी जनमत की पड़ताल...
सुवापाट में स्थित भद्रकाली पेट्रोल पंप से जामली, बेकल्दा और हमीरगढ़ को जोड़ने वाली सड़क सीधे इसी नदी से गुजरती है। करीब 500 मीटर नदी पार करने के बाद ही पक्की सड़क मिलती है। यानी, विकास के नाम पर सड़क सिर्फ़ कागज़ पर है, ज़मीन पर तो पानी ही पानी है।
जनता का सवाल...
क्या पुलिया बनाने का वादा सिर्फ वोट बैंक तक सीमित था...?
क्या मंत्री बनने के बाद जनता की प्राथमिकताएँ नेताओं की सूची से गायब हो जाती हैं...?
क्या मासूम बच्चों और बुजुर्गों की जान की कोई कीमत नहीं है...?
विडियो और तस्वीरें चीख-चीख कर कह रही हैं कि जनता के भरोसे की नाव बार-बार डूब रही है। सवाल सिर्फ पुलिया का नहीं, नेताओं की राजनीति और जनता के जीवन-मरण का है।
अब जनता ताे जनता भी पूछ रही है... क्या हमें अपने गाँव में पुलिया तभी मिलेगी जब अगली बार चुनावी रैली में फिर से कोई नया वादा होगा...?





Comments (0)