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रायपुरिया मेला विवाद… अव्यवस्था बहाना… असली कहानी झूले–चकरी… जगह के विवाद और अचानक पलटे फैसलों में छिपी है…

09 दिसंबर 2025

झाबुआ / रायपुरिया

✍️ ऋतिक विश्वकर्मा

 

रायपुरिया का मां भद्रकाली मेला इस वर्ष निरस्त कर दिया गया… पंचायत ने अव्यवस्था… भीड़ और अस्पताल पर दबाव का हवाला देकर आयोजन को रद्द करने की घोषणा कर दी... लेकिन खबर छपने के बाद अब गांव की गलियों से जो आवाज उठ रही है… वह पंचायत की आधिकारिक कहानी से बिल्कुल अलग दिशा में बह रही है… गांव कहता है कि मेला अव्यवस्था से नहीं… बल्कि अंदरूनी खींचतान… झूले-चकरी की जगह और ठेके को लेकर हुए विवाद और अचानक पलट दिए गए फैसलों की वजह से गिरा है…

 

मेले की घोषणा पहले ही हो चुकी थी … पाम्पलेट छपकर बांट दिए गए थे… 

गांव और आसपास के इलाकों में मेले की तिथि का प्रचार कर दिया गया था… माता जी काे चुनरी 1 तारीख काे ही चढ़ा दी गई थी... जिसके बाद  व्यापारी इंदौर, रतलाम, दाहाेद आदि जगहाें से माल खरीदकर तैयार बैठे थे… कुछ झूले-चकरी वाले भी रायपुरिया पहुंच चुके थे… वे बस जमीन आवंटन का इंतजार कर रहे थे… लेकिन 8 तारीख को अचानक बैठक हुई और 9 तारीख को प्लॉट आवंटन से पहले ही मेला निरस्त कर दिया गया …

 

जिसके बाद सबके मन में पहला प्रश्न यही उठना है कि… अगर अव्यवस्था पहले से ही इतनी बड़ी समस्या थी… तो पाम्पलेट छपवाकर निमंत्रण क्यों दिया गया…? तैयारियां क्यों करवायी गईं…?

 

यहीं से विवाद का दूसरा पक्ष सामने आता है…
हर साल झूले–चकरी जिस निर्धारित स्थान पर लगते आए है…उस परंपरागत जगह को इस बार रोक दिया गया और झूले–चकरी को दूसरी जगह लगाने की बात शुरू की गई… गांव में चर्चा है कि इसी बदलाव ने पूरे माहौल को तनावपूर्ण बना दिया…

कुछ लोग चाहते थे कि झूले–चकरी अपनी तय जगह पर ही लगें… कुछ लोग नई जगह पर व्यवस्था बदलने के पक्ष में थे…
इसी विरोधाभास ने पूरे आयोजन को उलझा दिया… इस मामले में एक बात और विश्वसनीय सूत्राें से बाहर आई के पंचाें और सरपंच के बीच एक विवाद झूला चकरी के लिए ऐसा भी है कि कुक्षी वाले काे ठेका देने के लिए एक पक्ष दबाव बना रहा था... ताे दूसरा पक्ष पुराने जाे वर्षाें से झूले-चकरी लगाते आ रहे है उनके पक्ष में खड़ा था... उसके बाद जाे हुआ वह पंचायत द्वारा जारी पत्र में स्पष्ट है... इस वर्ष मेला नहीं लगेगा...

कई झूले-चकरी वाले रायपुरिया पहुंचकर जमीन आवंटन की प्रतीक्षा कर रहे थे… लेकिन जब उन्हें बताया गया कि इस बार उनकी जगह बदली जा रही है… तो पूरा विवाद और गहरा गया… झूले-चकरी केवल मनोरंजन का विषय नहीं बल्कि ठेका… कमाई और स्थान के अधिकार से जुड़ा एक बड़ा आर्थिक मामला होता है और जब तय जगह पर रोक लगी… तो विरोध भी बढ़ गया…

 

सबसे ज्यादा नुकसान छोटे व्यापारियों का हुआ है...

जिन्होंने मेले की उम्मीद पर माल खरीदा … कईयों ने उधार तक लिया… खिलौने वाले… खाने–पीने वाले… छोटे ठेले वाले… सबने तैयारी की थी… महंगाई के दौर में उनकी सबसे बड़ी कमाई इन मेले पर टिकती है… अब उनका माल बोरो में बंद पड़ा है और नुकसान उनका है जिनके पास भरपाई का कोई साधन नही…

ग्रामीणों का कहना है कि पंचायत द्वारा बताए गए कारण… भीड़… अव्यवस्था… अस्पताल पर दबाव… हर साल रहते है… लेकिन मेला कभी नहीं रुका… इस बार रुका है क्योंकि असली वजह अव्यवस्था नहीं… बल्कि व्यवस्था के भीतर की खींचतान है…

 

अब गांव के कई लाेग ताे एक ही बात कह रहे है… इस बार मां भद्रकाली का मेला नहीं गिरा… पंचायत की विश्वसनीयता गिर गई… परंपरा नहीं टूटी… भरोसा टूटा और यह टूटन गांव के मन में लंबे समय तक रहेगी… जिसका खामियाजा ताे भुगतना हाेगा...

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